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Tuesday, September 4, 2018

Demonetisation - नोटबंदी पर लेख

भारतीय अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी  का प्रभाव

भारतीय अर्थव्यवस्था में एक शॉकवेव भेजा गया, जो 8 नवंबर के मध्यरात्रि में अपनी घोषणा के बाद से एक महीने पूरा करता है। भ्रष्टाचार, काले धन और जालसाजी की समस्याओं को दूर करने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मास्टर प्लान को तत्काल प्रभाव से लागु किया जिससे ये सब समस्या कथित तौर पर बंद हो गया है।
ऐसे देश में जहां 85% लेनदेन नकद द्वारा किया जाता है, दो उच्च मूल्य वाले बैंकनोट्स के कानूनी निविदा चरित्र को रद्द करने से बहुत सारे प्रश्न उठते हैं। देश में सेवा क्षेत्र जो अधिकतर नकदी लेनदेन पर निर्भर करता है, वह नोटबंदी के कारण प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा। इससे भारत की खपत गतिविधि एक डरावनी ठहराव की स्थिति में आ गई है। आर्थिक गतिविधि में यह गिरावट कुछ महीनों या वर्षों तक चल सकती है और नतीजतन, सकल घरेलू उत्पाद पिछले वर्ष के मूल्यों से काफी कम हो सकता है।
यहां तक कि देश को हर समय सबसे बड़ी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि आर्थिक परिस्थितियों में कुछ तिमाहियों में स्थिर होना है। इस दौरान ड्यूश बैंक और गोल्डमैन सैक्स ने अगले वित्त वर्ष में भारत की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं की सूची में शामिल होने की उम्मीद की थी । आने वाले वर्षों में एक बेहतर मॉनसून सीजन देश की कृषि अर्थव्यवस्था का पक्ष ले सकता है, जो वित्तीय वसूली में नया इतिहास जोड़ सकता है । अर्थशास्त्री यह भी अनुमान लगाते हैं कि उच्च मूल्य वाले मुद्रा नोटों को स्क्रैप करने का निर्णय सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को 2% तक ले जा सकता है ।

नोटबंदी से जुड़े अन्य तथ्य 

मूल्यवान मुद्रा और छोटी बचत योजनाएं
सरकार ने बैंकों को छोटी बचत योजनाओं में जमा के लिए बंद मुद्रा नोटों को स्वीकार नहीं करने के लिए अधिसूचित किया है। हालांकि, सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस तरह के कदम के लिए कोई कारण निर्दिष्ट नहीं किया गया है। छोटी बचत योजनाएं सबसे टिकाऊ वित्तीय विकल्पों में से एक हैं जो कम जोखिम कारक के साथ-साथ अधिक रिटर्न प्रदान करता है । कुछ लोकप्रिय बचत योजनाएं किसान विकास पत्र, सुकन्या समृद्धि, डाकघर बचत योजनाएं आदि हैं। उन लोगों के लिए जो बैंकों तक पहुंच के बिना हैं, नकदी लेनदेन ही उनकी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने और छोटे पैमाने पर निवेश के लिए एकमात्र व्यावहारिक माध्यम हैं।  डाकघर खातों को छोटी बचत योजनाओं पर लगाए गए नियम से बाहर रखा गया है।

कालाधन 
आरबीआई के मुताबिक़ डिमोनेटाइजेशन के समय देश भर में 500 और 1000 रुपए के कुल 15 लाख 41 हज़ार करोड़ रुपए के नोट चलन में थे. इनमें 15 लाख 31 हज़ार करोड़ के नोट अब सिस्टम में वापस में आ गए हैंयानी यही कोई केवल 10 हज़ार करोड़ रुपए के नोट सिस्टम में वापस नहीं आ पाए. (जिसमे कि नेपाल और भूटान सहित केंद्रीय सहकारी बैंकों को अगर शामिल कर लिया जाए तो सिस्टम में आए नोटो का आंकड़ा और बढ़ सकता है ) अर्थात जो 3 से 4 लाख करोड़ रुपये काले धन के आकड़ो का जो अनुमान लगाया जा रहा था वो फर्जी निकला इससे काले धन पर अंकुश लगाने की बात सच नहीं साबित हुई.

कैशलेश इकोनॉमी
डिजिटल लेनदेन की अगर बात की जाए नोटबंदी की घोषणा करने के बाद अपने पहले मन की बात में 27 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी को 'कैशलेस इकॉनमीके लिए ज़रूरी क़दम बताया था. लेकिन डिमोनेटाइसेशन के दो साल बाद रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक लोगों के पास मौजूदा समय में सबसे ज़्यादा नकदी है. अर्थात डिमोनेटाइजेशन के शुरू के कुछ महीनों को छोड़कर वर्तमान में लोग पहले से कही ज्यादा नगदी का इस्तेमाल कर रहे है। 

9 दिसंबर, 2016 को रिजर्व बैंक के मुताबिक आम लोगों के पास 7.8 लाख करोड़ रुपए थेजो जून, 2018 तक बढ़कर 18.5 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गए हैं। मोटे तौर पर आम लोगों के पास नकदी डिमोनेटाइजेशन के समय से दोगुनी हो चुकी है.
रिजर्व बैंक के आंकड़ों से आम लोगों के पास पैसा राष्ट्रीय आमदनी का 2.8 फ़ीसदी तक बढ़ा हैजो बीते छह साल में सबसे ज्यादा आंका जा रहा है। 
अर्थात कैशलेस इकॉनमी की बात भी सच साबित नही हुई। 

नकली करेंसी
खासतौर पर डिमोनेटाइजेशन के बाद आए 500 रुपये के नए नोट और 2000 रुपये के नोट की नकल तैयार नहीं हो पाने का सरकार का दावा फ्लॉप साबित होता दिखाई दे रहा है। रिपोर्ट के अनुसारवित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले 2017-18 में 500 और 2000 के नकली नोट की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है।
2016-17 में 500 रुपये के 199, 2000 रुपये के महज 638 नकली नोट (पुराने) देश में मिले थेलेकिन 2017-18 में 500 रुपये के 9892 और 2000 रुपये के 17929 नकली नोट बाजार में चलन में पाए गए।  और यही नही वित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले 2017-18 में 100 रुपये की नकली करेंसी में 35 फीसदी और 50 रुपये की नकली करेंसी में 154.3 फीसदी का जबरदस्त इजाफा हुआ है।
इससे साफ है नकली करेंसी रोकने के मामलों में सरकार नाकाम सिद्ध हुई है..

नक्सलवाद और आतंकवाद
डिमोनेटाइजेशन की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अंदर नक्सलियों और देश के बाहर से फंडिंग पाने वाली आतंकी हरकतों पर नोटबंदी से अंकुश लगने की बात कही थी.
गृह राज्य मंत्री हसंराज गंगाराम अहीर ने सदन में बताया था कि जनवरी से जुलाई, 2017 के बीच कश्मीर में 184 आतंकवादी हमले हुएजो 2016 में इसी दौरान हुए 155 आतंकवादी हमले की तुलना में कहीं ज़्यादा थे। 
गृह मंत्रालय की 2017 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू कश्मीर में 342 आतँकवादी हमले हुएजो 2016 में हुए 322 हमले से ज्यादा थे। इतना ही नहीं, 2016 में जहां केवल 15 लोगों की मौत हुई थी, 2017 में 40 आम लोग इन हमलों में मारे गए थे। कश्मीर में आतंकवादी हमले 2018 की शुरुआत से भी जारी हैं। वही नक्सल गतिविधियों में गिरावट आई है लेकिन वह राज्य सरकार व अन्य कारणों से और सैन्य बलों द्वारा चलाये जा रहे विभिन दबावपूर्ण ऑपेरशन का परिणाम अधिक हो सकता है


परिणाम 

यह अनुमान लगाया गया है कि काले धन पर नोटबांदी  की यह शल्य चिकित्सा का बड़ा कदम देश में नकद रहित लेनदेन भी बढ़ाएगी और टैक्स संग्रह में सभी गांठों को खोल देगी। लेकिन दूसरी ओर, अचानक मौद्रिक सुधार के कारण ग्रामीण परिवारों और बड़े नागरिकों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया गया है। सभी 1000 रुपये और 500 नोटों को स्क्रैप करने का निर्णय इसे दुनिया भर में शीर्षकों के लिए बनाया गया है, जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों टिप्पणियों को आकर्षित करता है।

1. अनुकूल_परिणाम -
  1. एक आधुनिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तन।
  2. इस अभियान ने अर्थव्यवस्था के अधिक औपचारिकरण को बढ़ावा दिया है। 
  3.  मुद्रा बाज़र में जवाबदेही बढ़ी है और मुद्रा वापिस बैंकिंग सिस्टम  में लोटी है। 
  4. बैंक जमा के आंकड़े और संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट में वृद्धि ने काले धन की होल्डिंग्स पर बेहतर प्रकाश डाला है।
  5. बैंको की रिपोर्ट के आधार पर शेल फर्मों की पहचान और उनके द्वारा मनी लॉंडरिंग गतिविधियों के खिलाफ कार्यवाही करने में आसानी होगी।
  6. इससे संभवतः बेहतर कर के साथ भावी कर राजस्व में वृद्धि हो सकती है 2017-2018 के इकॉनामिक सर्वे के मुताबिक नोटबंदी के बाद देश भर में टैक्स भरने वाले लोगों की संख्या में 18 लाख की बढ़ोत्तरी हुई है। 
  7. डिजिटल लेनदेन कुछ ही सही लेकिन बढ़ोतरी हुई है हालिया बढ़ोतरीम्यूचुअल फंड और बीमा कंपनियों के क्षेत्र में कर प्राप्ति के नए रास्ते खोलेगा। 
  8. बैंको द्वारा बचत का वित्तीयकरण अधिक सम्भव हुआ है। 
2. के प्रतिकूल परिणाम-
  1. नोटबंदी से फ़ायदे से उलट इसे लागू करने में रिजर्व बैंक को हज़ारों करोड़ का नुकसान अलग उठाना पड़ा। नए नोटों की प्रिटिंग के लिए रिजर्व बैंक को 7,965 करोड़ रुपए ख़र्च करने पड़े. इसके अलावा नकदी की किल्लत से बचने के लिए ज़्यादा नोट बाज़ार में जारी करने के चलते 17,426 करोड़ रुपए का ब्याज़ भी चुकाना पड़ा। 
  2. इसके अलावा देश भर के एटीएम को नए नोटों के मुताबिक कैलिब्रेट करने में भी करोड़ों रुपए का ख़र्च सिस्टम को उठाना पड़ा है। 
  3. नोटबंदी से देश की आर्थिक विकास दर की गति पर असर पड़ा है, 2015-1016 के दौरान जीडीपी की ग्रोथ रेट 8.01 फ़ीसदी के आसपास थीजो 2016-2017 के दौरान 7.11 फ़ीसदी रह गई और इसके बाद जीडीपी की ग्रोथ रेट 6.1 फ़ीसदी पर आ गई. भारतीय अर्थव्यवस्था को ग्रोथ के टर्म में 1.5 फ़ीसदी का नुकसान हुआ है. इससे एक साल में अनुमानित 2.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। 
  4. सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (CMIE) के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्विस (CPHS) के आंकड़ों के मुताबिक 2016-2017 के अंतिम तिमाही में क़रीब 15 लाख नौकरियां गई हैं। 
  5. भारत एक बड़ी कैश इकोनॉमी है और नोटबंदी की नीति ने उसे बहुत चोट पहुंचाई है.
  6. भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी संगठन भारतीय मजदूर संघ ने भी नोटबंदी पर ये कहा है, "असंगठित क्षेत्र की ढाई लाख यूनिटें बंद हो गईं और रियल एस्टेट सेक्टर पर बहुत बुरा असर पड़ा है। जिससे बड़ी तादाद में लोगों ने नौकरियां गंवाई हैं। प्राइवेट इन्वेस्टमेंट लगभग खत्म हो गया था। 
  7. सबसे ज्यादा असर असंगठित क्षेत्र पर पड़ा जो रोजाना दिहाड़ी मजदूरी पर आश्रित थे। 
  8. ज़्यादातर नकदी में लेन-देन करने वाले कृषि क्षेत्र पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है. किसानों को उनकी पैदावार के लिए वाजिब क़ीमत नहीं मिल पाई
निष्कर्ष 
अतः यह कहा जा सकता है कि सरकार को अर्थव्यवस्था में नकदी के रूप में मौजूद काले धन को लेकर पहले से कोई अनुमान नहीं था। सरकार ने डिमोनेटाइजेशन की घोषणा के बाद इसे स्वीकार भी किया। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 16 दिसंबर, 2016 को लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में ये बात मानी। 
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के छापों से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोग अपने काले धन का महज पांच फ़ीसदी हिस्सा ही नकदी के तौर पर रखते हैं. इसके बावजूद डिमोनेटाइजेशन जैसा कदम उठाया गया। डिमोनेटाइजेशन को इम्पलीमेंट करने में सरकार असफल रही इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि डिमोनेटाइजेशन के दौरान 43 दिनों में 60 बार सरकार ने अपने विभिन्न नियम बदले जिससे लोगो को अधिक परेशानी हुई। साथ ही इस दौरान एटीएम कतारों एवं अन्य नोटबंदी कारणों से आम जनता की मृत्यु भी हुई थी। 


अगला कदम क्या 

सरकार अब आगे आर्थिक सुधार के विभिन्न पहलुओं पर काम कर सकती है।  स्टार्ट अप योजनाओं के साथ एफडीआई और छोटे औद्योगिक उपक्रमों को बढ़ावा देना रोजगार के अवसर पैदा करेगा और इसके साथ ही सार्वभौमिक आर्थिक सम्बन्ध को सुदृढ़ बनाने के लिए सहायक सिद्ध होगा जिससे हमारी अर्थव्यवस्था नोटबंदी के दुष्प्रभाव से निपटने के लायक स्थिति में आ सकता है। 

Monday, September 3, 2018

Demonetisation - नोटबंदी पर लेख


8 नवंबर 2016 को  भारत सरकार ने नकली नोट  और मनी लॉंडरिंग की समस्या से निपटने के लिए 1000 रुपये और 500 रुपये के उच्च मूल्य नोटों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस संबंध में समय - समय पर बहुत से तर्क वितर्क किये गए हैं, इसमें से कुछ सार रूप में यहाँ प्रस्तुत है।

Demonetization (नोटबंदी  )क्या है  ?

                          नोटबंदी ( Demonetisation ) व्यवहार में शामिल एक मुद्रा इकाई की कानूनी निविदा स्थिति को समाप्त करने का अधिनियम है। अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से तरलता संरचना पर सकारात्मक परिवर्तन की उम्मीद करते हुए, राष्ट्र अक्सर आर्थिक स्थिति को संतुलित करने के उपाय के रूप में नोटबंदी की नीति को अपनाते हैं। दुनिया भर के देशों ने मुद्रास्फीति जैसी स्थिति को नियंत्रित करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कुछ या दूसरे बिंदु पर Demonetisation ( नोटबंदी ) का उपयोग किया है।
Demonetization परिसंचरण से मुद्रा के किसी विशेष रूप को वापस लेना है।  पुरानी मुद्रा को किसी अन्य मुद्रा से जगह बदल दिया जाता है  या मुद्रा परिसंचरण को लॉक कर दिया जाता है।  इसके कई कारण हैं; कुछ कारणों से मुद्रास्फीति में भ्रष्टाचार को कम करने और नकदी रहित लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए प्रमुख है।  इससे पारदर्शिता आएगी तथा देश के सभी लेनदेन मोड के भीतर कैशलेस व्यव्हार को बढ़ावा मिलता है और  देश के आर्थिक विकासशीलता को गति मिलती है।

कब हुई थी नोटबंदी

8 नवंबर 2016 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मुलाकात की और करीब रात 8 बजे देश के नेशनल टेलीविजिन पर ऐलान कर दिया की आज मध्यरात्रि रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपये के नोट नहीं चलेंगे. इन नोटों को गैरकानूनी घोषित कर दिया जायेगा।  अर्थात देश में चल रहे 500 रुपए और 1000 रुपए के करंसी नोट लीगल टेंडर में नहीं रहेंगे.

कैसे हुई नोटबंदी

                        मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बताया जाता है एक साल तक रिसर्च और कई बैठकों के बाद ये फैसला लिया गया था। इस काम के लिए तत्कालीन वित्त सचिव हसमुख अढिया समेत 6 लोगों की टीम इस विषय पर काम कर रही थी। सभी रिसर्च के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जिम्मेवारी पर ये कड़ा फैसला लिया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस सख्त फैसले के लिये करीब ढाई घंटे पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इजाजत दी थी। ( ये बात एक आरटीआई के जरिए पता चली थी। )
                          नोटबंदी के लिए सभी लोगों को बैंक से इन पुराने नोटों को वापस करवाने के लिए 31 दिसंबर तक का समय दिया गया. इस दौरान बैंको की भी खूब मन मानी चली और पता चला था की  एक्सिस बैंक जैसे सम्मानीय बैंक में भी हेराफेरी से 100 करोड़ रुपये बदले थे। वहीं नियम के अनुसार हर व्यक्ति 4 हजार रुपये बैंक से बदल सकता है इसके बदले उन्हे अपनी आई डी प्रूफ दिखाना था।

नोटबंदी का फैसला क्यों लिया गया

नोटबंदी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  डिमोनेटाइजेशन ( नोटबंदी ) को भ्रष्टाचार, कालाधन, जाली नोट और आतंकवाद के खिलाफ उठाया गया बड़ा कदम बताया था। 8 नवंबर, 2016 को डिमोनेटाइजेशन की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई तर्क पेश किए जिसमें नोटबंदी से होने वाले फ़ायदों में काले धन से लेकर नक्सलवाद और आतंकवाद पर अंकुश लगाने तक को शामिल किया था। 
कालाधनआतंकी फंडिंग पर लगाम लगानेडिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने और नकली करेंसी को चलन से बाहर करने का लक्ष्य सरकार ने रखा था। 


भारत में कब-कब नोटबंदी हुए हैं 

भारत सरकार ने दो पूर्व अवसरों पर नोटबंदी ( Demonetisation ) किया था- एक बार 1946 में और फिर जनवरी 1978 में- और दोनों ही मामलों में, नोटबंदी का प्रमुख लक्ष्य औपचारिक आर्थिक प्रणाली के बाहर "काले धन" द्वारा कर चोरी का मुकाबला करना था। गौरतलब है कि नोटबंदी का ऐसा फैसला  जो 1946 में हुआ था तब यहाँ अंग्रेजों का शासन था  उसके बाद 1978 में भी हुआ था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई सरकार ( जनता पार्टी की सरकार ) ने 1000, 5000 और 10000 हजार के नोटों को बंद कर दिया था। तब तत्कालीन आरबीआई गर्वनर आईजी पटेल ने सरकार के फैसले की आलोचना की थी
आपको बता दें भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा प्रिंट की गई सबसे बड़ी करेंसी, 10 हजार रुपये का नोट ही था. इसे पहली बार 1938 में लाया गया था। 
हालांकि, जब मोदी सरकार ने नोटबंदी की तो उन्हें आरबीआई गर्वनर उर्जिट पटेल का साथ मिला. हालांकि, दुनिया के कई इकोनॉमिस्ट ने फैसले की आलोचना भी की थी।
2012 में, केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने नोटबंदी के खिलाफ सिफारिश की थी, एक रिपोर्ट में कहा था कि नोटबंदी काला धन या शैडो अर्थव्यवस्था से निपटने का समाधान नहीं हो सकता है, जो काफी हद तक बेनामी संपत्ति और आभूषणों के रूप में आयोजित होता है। आयकर जांच से आंकड़ों के मुताबिक, काले धन धारकों ने अपनी संपत्ति का केवल 6% या उससे कम धन नकद रखा, यह सुझाव देते हुए कि इस नकदी को लक्षित करना एक सफल रणनीति नहीं होगी।
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने प्रारम्भ में नोटबंदी का विरोध किया था। बीजेपी के प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने 2014 में कहा था कि जनता के सदस्य जो अक्सर अशिक्षित थे और बैंकिंग सुविधाओं तक पहुंच नहीं थी, इस तरह की नीति से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगे।

नोटबंदी  की प्रक्रिया  (Process)

₹ 500 और ₹ 1000 बैंकनोट्स को चलन से समाप्त करने की योजना, नोटबंदी की घोषणा के  6 - 10  महीने पहले शुरू की गई थी, और गोपनीय रखा गया था, लगभग दस लोगों को इसके बारे में पूरी तरह से पता था। नए ₹ 500 और ₹ 2000 बैंक नोटों को मुद्रित करने की तैयारी मई 2016 की शुरुआत में शुरू हुई थी। भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित एक बैठक में केंद्रीय कैबिनेट को 8 नवंबर 2016 को इस योजना के बारे में सूचित किया गया था।

नोटबंदी पर रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट

मार्च 2016 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने कहा कि परिसंचरण में कुल बैंक नोट 416.42 ट्रिलियन (यूएस $ 240 बिलियन) मूल्यवान हैं, जिनमें से लगभग 86% (₹ 14.18 ट्रिलियन (यूएस $ 210 बिलियन) के आसपास) ₹ 500 और ₹ 1,000 के बैंकनोट्स प्रचलन में थे।
28 अक्टूबर 2016 को भारत में परिसंचरण में ₹ 500 और ₹ 1,000 के कुल बैंकनोटों का मूल्य 17.77 ट्रिलियन (260 अरब अमेरिकी डॉलर) था।  वॉल्यूम के मामले में, रिपोर्ट में कहा गया है कि परिसंचरण में कुल 9026.6 करोड़ (90.26 बिलियन) बैंकनोट्स का 24% (लगभग 22.03 अरब) ₹ 500 और ₹ 1,000 के बैंकनोट थे।
अब रिजर्व बैंक ने डिमोनेटाइजेशन के दौरान बैंकिंग सिस्टम में वापस लौटे नोटों के बारे में पूरी जानकारी सामने रख दी है। इसके मुताबिक ₹ 500 और ₹ 1,000  के 99.3 फ़ीसदी नोट बैंकों में लौट आए हैं.

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